फूल की खुशबू से गुलदान जला करते हैं,
अब फरामोशी में, एहसान जला करते हैं |
वक्त था जब जला करते थे चिरागों से चिराग,
आज इंसान से इंसान जला करते हैं ...
Thursday, February 19, 2009
Wednesday, February 18, 2009
खलिश सी है ...
कुरेदता हूँ ये तन्हाई और सोचता हूँ,
दबा सुकून जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
चंद खलती हुई कुछ बातों में, जल्द ढलती हुई कुछ रातों में,
दबा जूनून जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
किनारों से हटती हुई ज़िन्दगी में, धारों से सटती हुई ज़िन्दगी में,
उधार आती हुई कुछ शामें हैं , किसी का नाम लेके जाती हैं
गूंजते अनकहे संन्नाटे में, मिली जो एक शाम अपने लिए॥
तलाशता हूँ ऐसी शामों में,
दबा सुरूर जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
अँधेरा 'गिर्द है चिरागों के, वीराने में अँधेरा रोशन है ,
कश्तियाँ ठिठकी हुई लहरों पे, किरण को ढूंढ रहा है माझी,
कुछ ऐसी बेजुबान ग़ज़लों में,
दबा सा नूर जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
..........................................................................................................................................
This piece dates back to dec '99 when i was in class XI .
Found it somedays back while a cleaning operation.
Not bad, I felt..
Cheers !!
दबा सुकून जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
चंद खलती हुई कुछ बातों में, जल्द ढलती हुई कुछ रातों में,
दबा जूनून जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
किनारों से हटती हुई ज़िन्दगी में, धारों से सटती हुई ज़िन्दगी में,
उधार आती हुई कुछ शामें हैं , किसी का नाम लेके जाती हैं
गूंजते अनकहे संन्नाटे में, मिली जो एक शाम अपने लिए॥
तलाशता हूँ ऐसी शामों में,
दबा सुरूर जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
अँधेरा 'गिर्द है चिरागों के, वीराने में अँधेरा रोशन है ,
कश्तियाँ ठिठकी हुई लहरों पे, किरण को ढूंढ रहा है माझी,
कुछ ऐसी बेजुबान ग़ज़लों में,
दबा सा नूर जो मिल जाए तो दिल को दे दूँ
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This piece dates back to dec '99 when i was in class XI .
Found it somedays back while a cleaning operation.
Not bad, I felt..
Cheers !!
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